Saturday, June 6, 2009

पत्रकारिता की पतनलीला

अभी बहुत दिन नहीं हुए। चुनाव का प्रचार अभियान शुरू होने की तैयारियों को देखते हुए लग रहा था कि अबके कुछ 'हटके' ही होगा। कहीं 'जय हो' ख़रीदा जा रहा था कहीं 'भय हो' की तैयारियां चल रही थीं। कोई चौक- चौराहा, नुक्कड़- कोना ऐसा नही था जहाँ सफ़ेद झूठ बोलते पोस्टर, होर्डिंग वगैरह उतारे लगाये जा न रहे हों। छुठ्भैये नेताओं की जुबान की मिठास देखते बन रही थी। उपर से बन कर आयी योजनाओं को निचले स्तर तक कैसे लागू करना है इस बात को लेकर सभाएँ हो रही थीं। सभाएँ कहाँ कहाँ होंगी तय हो गया। बिजली चोरी के लिए कुण्डी कहाँ लगानी है, यह फ़ैसला टेंट-तम्बू वालों पे छोड़ दिया गया। लेकिन जब ख़बर मिली कि कई अख़बारों ने चुनाव स्पेशल टेरिफ कार्ड छपवायें हैं तो पसीने छूट गए। गैर पत्रकार मित्रों से मैंने इस बात का जिक्र भी नही किया क्योंकि सचमुच शर्म आ रही थी।
पत्रकारों या अखबार मालिकों को कोई शर्म-वर्म नही आयी। ख़बरों कि पवित्र जगह बड़े धड़ल्ले और बेशर्मी के साथ बेची गयी। पहले बॉक्स आइटम के नीचे 6 पॉइंट का विज्ञापन छाप दिया करते थे, इस बार तो वह भी नही किया।
खबरों के स्तर और भाषा से साफ़ पता चलता था कि खबरें पार्टियों के नुमायेंदे ही लिख रहे हैं। सबसे बड़े अखबार समूह टाईम्स ने तो बाकायदा एक वेबसाइट पर पारदर्शिता का ढोंग करते हुए तो नोट बटोरे। अब तो किसी को बताते हुए भी शर्म आती है कि मैं इसी समूह के दिनमान से बरसों जुडा रहा हूँ।

पिछले दिनों जनसत्ता में प्रभाष जी का कॉलम 'कागद कारे' पढ़ा तो दिल को बड़ी राहत मिली कि अभी सबकुछ ख़त्म नहीं हुआ। दल्लागिरी के भरतनाट्यम को देखते हुए जो लोग अपमानित महसूस करते होंगे, सिर्फ़ वही प्रभाष जी के इन शब्दों के पीछे छुपी पीड़ा को समझ सकते हैं, 'भ्रस्टाचार को सदाचार बनाने कि टाईम्स कि दलील का मतलब है कि बलात्कार करना और उसकी इच्छा रखना स्वाभाविक है और हर आदमी चाहता है । इसलिए आपके घर कि किसी माँ, बेटी , बहन, भाभी से कोई बलात्कार कर जाए तो तो नाहक हो हल्ला और पाखंड मत करो । बलात्कार को कानूनी रूप से मंज़ूर कर लो। उसके ख़िलाफ़ दंड और वर्जना मत बढाओ । बलात्कार से पैदा हुए बच्चे/ बच्ची का तिलक करो और वैध उत्तराधिकारी मान लो । इससे बलात्कार भ्रस्टाचार नही रहेगा सदाचार हो जाएगा। आख़िर बलात्कार आदमी कि सहज प्रवृति है और स्वस्थ और सभ्य समाज सहज प्रवृतियों को मान कर ही विकास करता है...........' 'विज्ञापन को ख़बर बनाकर बिना बताये कि यह पैसा लेकर छपी गयी है पठाक के विश्वास को तोड़ना है और उसके साथ खेल करना है. ख़बर को अखबार कि पवित्र जगह इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह पठाक के विश्वास कि जगह होती है।'
सचमुच पवित्रता का बलात्कार हो रहा था तभी मुझे ड्राइवरों की एक टोली की बातचीत सुनने को मिली जो एक दूसरे को बता रहे थे कि यह पैसे लेकर छापी जा रही खबरें हैं। दिल को तसल्ली हुई की लोग जागरूक हो रहे हैं।
बहुत सा झूठा प्रचार करने वाले हारे तो और उम्मीद जागी। ६ जून के 'जगबानी' में भिंडरावाला को अमर शहीद बताते हुए शहीदी समागम के इश्तिहार छपे देखे तो बस मुँह से यही निकला 'लाला जी भगवान् आपकी आत्मा को शान्ति और आपके बच्चों को सदबुध्धि दे' .

8 comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

स्वागत है। लुधियाने की खबरें अब पढ़्ने को मिला करेंगीं - हिन्दी में।

एक जागता हुआ इंसान इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है और आप उसे पूरा करेंगे, यही शुभकामना है।

word verification कृपया हटा दें। लगता है शुभेच्छा का भी प्रमाण माँगा जा रहा है।

Unknown said...

aapka swagat hai

DEV said...

bhai girjesh word verification kaise hataaten hain?

DEV said...

rahi baat ludhiana ki, nahin bhai, ab to vishva gaon(GLOBAL VILLEGE) ki baaten hongi.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

yahi to ho raha hai. narayan narayan

उम्मीद said...

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..

राजेंद्र माहेश्वरी said...

चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है