Friday, December 4, 2009

आजकल

चोले के पीछे क्या है?
हमारे मुहल्ले में एक सिख बुज़ुर्ग रहा करते थे जिनका मैं बहुत आदर करता था। वह अक्सर कहा करते थे कि 'धर्मस्थलों में पलने वालाहमेशा लड़ता हुआ नज़र आएगा, वो चाहे बन्दर हो या इंसान' गुरुद्वारों की गुल्लक के आस-पास घूमते खालसों (सिख नहीं) को भी अक्सरआपस में जूतम-पैजार होते हुए जब भी मैं देखता हूँ मुझे वह बुज़ुर्ग याद जाते हैं।
इस बार 'दशम ग्रंथ' को लेकर उठा पटक शुरू हो गई है।
निशाने पर हैं अकाल तख़्त के पूर्व जत्थेदार प्रोफेसर दर्शन सिंह खालसा। कुश्ती सेपहले एक मंझा हुआ पहलवान जैसे दोनों जांघों पर ताल ठोक कर चुनौती देता-लेता है, वैसे ही धड़ल्ले से प्रोफेसर रागी ने अकाल तख़्त कीचुनौती स्वीकार कर ली है।
दशम ग्रंथ पर बहस बहुत पुरानी है। लगभग उतनी ही पुरानी जितना सिख धर्म पुराना है। आदि ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब को सिक्ख सम्प्रदायशुरू
से ही अपना गुरु मानता आया है। इसमें सिखों के दसवें गुरु 'गुरु गोबिंद सिंह' ने अपने पिता 'गुरु तेग बहादुर' की बाणी तो जरूर शामिल की थी लेकिन अपनी बाणी को इसमें शामिल नहीं किया। 'दशम ग्रंथ' के नाम से एक अलग ग्रंथ है जिसे बहुत से लोग गुरु गोबिंद सिंह द्वारारचित मानते हैं और बहुत से नहीं। अब सवाल यह उठता है कि दशम ग्रन्थ गुरबाणी है भी कि नहीं? सारे लफड़े का चौक-चौराहा यहीं कहीं है।नांदेड स्थित गुरुद्वारा हजूर साहिब में पहले आदि ग्रन्थ और दशम ग्रन्थ दोनों का ही पाठ होता था। आरती के समय दसवें गुरु की बाणी कापाठहोता था। फिर सत्तर के दशक में बंद कमरों में बैठ कर इन्होने फ़ैसला कर लिया कि जिस तरह आदि ग्रन्थ का पाठ (अखंड पाठ, साधारण पाठआदि) सिख पंथ में किया जाता है उस तरह दशम ग्रन्थ का पाठ किया जाए। फैसले तो यह बेचारे बहुत करते हैं मगर लागू नहीं होते।समस्या जस की तस खड़ी रहती है और मौका देख कर बवाल खड़ा कर लिया जाता है।
सन 1953 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी ने आदि ग्रन्थ की जो प्रतियां छपवायीं थी उसमे पता चला कि मंगलाचरण और शीर्षकों कीतरतीब बदल दी गई है। खूब हंगामा हुआ। कमिटी के कानों जूँ नहीं रेंगी। फिर चीफ खालसा दीवान वाले उठ खड़े हुए। 28 जून 1953 के दिनयह फ़ैसला हुआ कि संपादन का काम धार्मिक सलाह्कारों पर छोड़ दिया जाए, किसी तरह की इश्तिहारबाज़ी अथवा प्रेस प्रोपेगंडा कियाजाए और छापी हुई प्रतियों की बिक्री रोक दी जाए। इसके बाद कुछ दिनों के लिए सब ठंडे होकर बैठ गए।
गुरुद्वारी सियासत में उलझे खालसों की एक खास खूबी यह भी है की वे पढने लिखने से हमेशा परहेज़ करते रहे हैं। यही वजह रही होगी कि इनसमझदार खालसों के द्वारा उपलब्ध जानकारी के आधार पर मैक्स आर्थर मेकालिफ ने अपनी किताब 'सिख रिलिजन' में दशम ग्रन्थ किबाबत लिखा है 'बहुत सारे समझदार सिखों का यह मत है कि दशम ग्रन्थ में चरित्र और हिकायतों का हिंदुत्व से सम्बंधित हिस्सा
पढनेलायक नहीं है। आदि ग्रन्थ में दर्ज बाणी के यह समतुल्य नहीं है इसलिए इसे आदि ग्रन्थ में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। चरित्र औरहिकायतें जिसमें स्त्रियों के धोखा देने वाली कहानियाँ दर्ज हैं इनका अलग से संग्रह प्रकाशित किया जाना चाहिए जो धार्मिक कामों के लिए पढ़ी जाए, बल्कि दिल बहलावे के लिए पढ़ी जाए।
डॉ गोकुल चंद नारंग ने भी अपनी किताब ' ट्रांस्फोर्मेशन ऑफ़ सिखिस्म' दशम ग्रन्थ के बारे में लिखा है 'यह एक मिला-जुला संग्रह है।इसका कुछ हिस्सा गुरु जी कि अपनी रचना है और बाकि जो उनके दरबारी कवि थे उनकी रचनाएँ हैं। इस संग्रह को लिखने का श्रेय गुरु जी केनाम नहीं जा सकता.....यह किताब सिखों में बहुत आदरणीय नहीं समझी जाती क्योंकि वह इसके बड़े हिस्से को झूठ या असलियत से दूरमानते हैं।'
दूसरी तरफ़
चीफ खालसा दीवान के शोधकर्ताओं का दावा है कि 'दशम ग्रन्थ कि रचना आनंदपुर में ही हुई है और अगर यह बाणी दसवें गुरुकि रचना होती तो चौपाई 'हमरी करो हाथ दे रच्छा' का पाठ अमृतपान करते समय, राम अवतार का पाठ दसहरे के दिन, नवरात्रों में चंडीचरित्रों का पाठ और होली (होला मोहल्ला) के अवसर पर स्वर्ण मन्दिर में होता। 21 से 25 दिसंबर १९४४ तक गुरु गोबिंद सिंह के गुरुपर्व केसमय अकाल तख़्त में दशम ग्रन्थ का एक अखंड पाठ हुआ था। अकाल तख़्त के तत्कालीन जत्थेदार मोहन सिंह और शिरोमणि कमिटी केशोधकर्ता रंधीर सिंह उसमे स्वयं शामिल थे।
नांदेड में गुरु गोबिंद सिंह के
देहावसान के बाद उनकी पत्नी माता सुंदरी ने सिख विद्वान और गोबिंद सिंह के साथी भाई मनी सिंह को स्वर्णमन्दिर कि देख रेख के साथ-साथ गुरु गोबिंद सिंह की रचनाओं के संकलन की जिम्मेवारी दी थी। भाई मनी सिंह के एक पत्र जो उन्होंने मातासुंदरी के नाम लिखा था इस बात की पुष्टि हो जाती है की दशम ग्रन्थ की सभी रचनाएँ गुरु गोबिंद सिंह की ही लिखी हुई हैं। दशम ग्रन्थ का वहहिस्सा 'त्रिया चरित्तर' जिसपर सबसे ज्यादा शक किया जाता की यह गुरु जी की रचना नहीं है उसका ज़िक्र खास तौर से इस पत्र में आया है।भाई मनी सिंह ने साफ़-साफ़ लिखा है कि 'पोथियाँ जो झंडा सिंह के हाथ भेजी थी उसमें साहिब (गुरु जी ) की ३०३ चरित्र उपख्यान की पोथी हैजी जो भाई सिहां सिंह को दे देना जी'. इस पत्र को पढने के बाद शक की कोई गुंजाईश ही नहीं रह जाती।
जहाँ तक जाप साहिब का सवाल
है इसे गुरु गोबिंद सिंह ने कब और कहाँ लिखा इसका कोई ठोस प्रमाण तो नहीं मिलता लेकिन अगर्संकलनकरता ने इसकी पाण्डुलिपि पर अरम्भ्ह में जाप श्री मुखवाक पातशाही १० लिखा है तो जाहिर है रचना उन्ही की है। सिख विद्वान डॉ गोपालसिंह ने जाप साहिब का अंग्रेजी में अनुवाद किया था तो उसमे भी स्वीकार किया कियह रचना गुरु गोबिंद सिंह की ही है।
अकाल उसतति भी दशम ग्रन्थ का ही हिस्सा है। इसके भी आरंभ में 'उतार खासे दस्तखत पातशाही १०' लिखा मिलता है। इसके सवैयों कापाठ सिख अमृत बनते समय पिछले ३०० सालों से करते आए हैं। अब यह तो हो नहीं सकता कि सवैये गुरु साहिब ने लिखे हों और बाकि किरचना किसी और की हो।
बचित्तर नाटक उनकी आत्मकथात्मक रचना है इस रचना में 'तही प्रकास हमारा भयो, पटना साहब बिखे भव लयो' जैसी कितनी ही पंक्तियाँ
इस बात का सबूत पेश करती हैं कि गुरु गोबिंद सिंह के अलावा इसे कोई नहीं लिख सकता। 'चंडी दी वार' जिसे 'वार श्री भगवती जी' भी कहाजाता है, दशम ग्रन्थ का पांचवां अध्याय है। इसके पहले पद से ही अपनी अरदास (प्रार्थना) प्रारम्भ करते हैं। यह संस्कृत में लिखी मार्कंडेयपुराण पर आधारित वीर रस में लिखी एक अद्भुत रचना है जिसका प्रयोग युद्धक्षेत्र में अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए किया जाता रहाहोगा।
दशम ग्रन्थ का अगला अध्याय ज्ञान बोध है। इसके प्रारम्भ में 'श्री भगवती जी सहाई पातशाही १०' लिखा है। अगले अध्याय 'चवी
अवतार' केआरंभ में भी 'पातशाही १०' लिखा मिलता है। इसमें बहुत सारी रचनाएँ उन्होंने राम या श्याम के उपनाम से लिखी हैं। अपने पुत्र गोबिंद कोमाता गुजरी इन्हीं नामों से पुकारती थी क्योंकि उनके ससुर का नाम हरगोबिन्द था। भाई काहन सिंह के महान कोश में भी इस बात काहवाला मिलता है कि गुरु गोबिंद 'राम' और 'श्याम' उपनाम (तखल्लुस) से लिखते थे। 'जो एह कथा सुने और गावे' से लेकर 'गोबिंद दासतुम्हार' तक्सरा पाठ हर रोज़ शाम के पाठ 'रहरास'में पढ़ा जाता है।इसमें गुरु गोबिंद का नाम स्पष्ट रूप से आता है। नामधारी विद्वान महाराजबीर सिंह का मानना है कि उन्होंने नाम के साथ सिंह का प्रयोग इसलिए नहीं किया क्योंकि यह रचना उन्होंने १७५५ में पूर्ण की थी जबकि१७५६ में अमृतपान करके उन्होंने नाम के आगे सिंह लगाया था। इसी ग्रन्थ में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज और भी है जिसका नाम हैज़फरनामा। यह रचना गुरु गोबिंद सिंह ने औरंगजेब को संबोधित करते हुए लिखी हैं। जिसमे उन्होंने अपनी जंग और पहाड़ी राजाओं केव्यव्हार का ज़िक्र किया है।
गाय के थान में ज़ख्म हो तो दूहते समय बहुत बिदकती है. जिस बात को लेकर खालसे सबसे ज्यादा बिदकते हैं वह है 'पख्यान चरित्तर'इसमें पौराणिक कथाओं के आधार पर विभिन्न चरित्रों का चित्रण किया गया है। अगर बूढ़े राजा सलवान की जवान बीवी लूणा और उसकेहमउम्र सौतेले पुत्र पूरण की कथा भी इसमे शामिल
है तो प्रोफ़ेसर दर्शन सिंह खालसा को दशम ग्रन्थ अश्लील क्यों नज़र आता है? शिव कुमारने लूणा लिखी तो साहित्य अकादेमी को उसमे कोई अश्लीलता नज़र नहीं आई बल्कि अकादेमी ने शिव को सम्मानित किया। छुटपन से हमइसे सुनते आए हैं, हमें इसमें कोई बुरे नज़र नहीं आई।
दर्शन
सिंह खालसा को तब से जनता हूँ जब वह दर्शन सिंह 'रागी' हुआ करते थे। तब वह काफी संतुलित व्यव्हार करते थे। संकोची भी इतनेथे कि सवाल उनसे किया जाता जवाब जत्थेदार मंजीत सिंह देते थे। उन दिनों उनकी दाढ़ी में एक भी बाल सफ़ेद नहीं था और कोई चीज़ उन्हेंअश्लील नज़र नहीं आती थी। अब जब उनकी दाढ़ी में एक भी कला बाल नहीं है और पड्पोतों को पूरण भगत का किस्सा सुनाने की उमर होआई है तो अमेरिका के सिख अवेयरनेस सेंटर जाकर उनकी कौन सी ग्रंथि इतनी अवेयर हो गई है कि उन्हें अचानक सब कुछ नग्न औरअश्लील दीखने लगा है?
विदेशों से धर्म के नाम पर मिलने वाली अथाह दौलत जब कोई अकेला अकेला डकारना चाहता है तो
धर्म की सियासत के शिखर-पुरूष काफरमान हुक्मनामे की शक्ल इख़्तियार कर ही लेता है।कुछ दिन हुक्मनामा-हुक्मनामा का खेल चलता है। एक चोला भीतर ही भीतर दूसरेचोले के साथ ठगी की रकम कैसे बांटता है, सज़ा (तनखाह) की मियाद इस पर निर्भर करती है। पेट भर जाने के बाद शेर शिकार छोड़ करपानी पीने चला जाता है, सियार शोर मचाना बंद कर देते हैं और हड्डियों पर बचे-खुचे गोश्त पर टूट पड़ते हैं। इस बार भी यही होगा।













2 comments:

Anonymous said...

hello... hapi blogging... have a nice day! just visiting here....

Anonymous said...

very nice ......

A Silent Silence : Ye Dua Mere Labon Ki..(ये दुआ मेरे लबों की..)

Banned Area News : Cops raid 'noisy' Bon Jovi bash